काई लगी हुई दीवारों का शहर

हर एक शहर 
एक अलग पहचान के साथ जी रहा होता है
आज जिस शहर मैं हूं
वो शहर काफ़ी पुराना है
काशी जैसा पुराना नहीं
लेकिन इतना पुराना की इतिहास में खास था
इस शहर की दीवार, गली, तालाब
गिले रास्ते, नीला आसमां
महकते हुए हरिश्रंगार के फूल
इस शहर में वो सब है जो मुझे पसंद है
घने घने बादल
शीतल तेज़ हवा
चेहक्ति हुई चिड़िया की पुकार
बिन बताए बरसात का हो जाना
जबकी इसे बरसात के बाद वाला मौसम कहते हैं
यहाँ सुबह 
फूल बेचते
टोकरी में मछली बेचते
दुकान वाले
बीना दुकान वाले भी
और साइकिल पर एल्युमिनियम की मटकी में
मछली बेचते हुए भी देखा मैंने
रोशनी होते ही सड़कों पर काम पे जाते लोग 
शिकार पे जाति बिलियां
और साइकिल चलाती औरतें
किसी और शहर में नहीं देखा मैंने
हाँ बिलकुल
घाट घाट का पानी पिया है मैंने
सैर पे जाते लोग कम ही मिले 
उनमे से कई मेरी तरह बेरोजगर लोग
और कई जीवन के आखिरी मौसम को जीते हुए लोग
जिन्के पास अब ढेर सारा समय है
ये महसूस करने के लिए की समय नहीं है अब
और मैं चाय की टपरी कैसे भूल जाऊं 
सुबह पूरा शहर
टपरी पे मिलता है जैसे
धीमे धीमे मीठी भाषा में गप्पे लगाते हुए
कुछ अखबार भी शायद घर से ले आते हैं साथ
गुज़रते ही चाय की भाप दिखती है
बिस्कुट की बोतलों के बिछो बीच
जिस्की खुशबू बेहोश करने की काबिलियत रखती है
इस शहर में आकार जो कोई खुद को बहुत खास मानता हो 
वो भी आम बन्ना चाहेंगे
यहां की आम जिंदगी इतनी खास है
और क्या मैंने यहां के रंगिन मकानों के बारे में बताया? 
अलग किसम के खिड़कियां, जालियां और छज्जे
हर घर पर लिखा हुआ अलग नाम
दीवारों में लगी हुई काई
कदम के फूल से भरी हुई सड़क
तालाब के कीनारे बसे हुए घर
उसमे बरतन और कपड़े धोते हुए आदमी और औरतें
गहरे हरे रंग के पेड़
और नीले और सफेद रंग में रंगा हुआ पुरा शहर
लाल झंडों की विरोधी लहरें
और पीले फूल सड़कों पे बिछे हुए
कोई इसमे आकार अंजान शहर नहीं कह पाता इस्को
ये शहर समा लेता है सबको खुदमे

 

22nd August, 2022
7:20am

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