
तुम्हें पता है
आजकल बहुत सोचती हूं मैं तुम्हें
ये भी सोचती की इतना क्यों सोचती हूं मैं
और ये भी की क्या सच में मैं तुम्हें इतना सोचती हूं की जिंदगी भर तुम्हें सोच पाउंगी?
क्या यही वो अंत है जो मैंने पहले सोचा था?
तुम्हें पता है
हर बार दुनिया से क्या बातें होंगी
तुम्हारे बारे में जब कोई पूछेगा या कहेगा
ये सोचती हुं की उनके क्या सवाल होंगे
मेरे क्या जवाब होंगे
क्या नहीं, किस तरिके से, ये सोचती हूं
इसलिये नहीं की फ़र्क पड़ता है मुझे
इसलिये क्यूंकी कहीं तुम कुछ न सोचो
तुम्हें पता है
जब भी तुम पुछते हो कहा चली जाती हो अचानक से
मैं यहाँ आती हूँ
खुद से सवाल जवाब और सोचने समझने
हाँ हाँ बहुत समझदार हुं मैं
बात चित से मसले हल करती हूं
तुम्हें पता है
कई चीजें मैं ये सोच के करती हुं
की बस ये आखिरी बार है
पर वो आखिरी होता ही नहीं
ये तो धस्ते जाना है
डूब जाना है गहराइयों में
बहुत मुश्किल है ये तो
कैंची से जड़ें काटनी होंगी
ये तो उगता ही जाएगा नहीं तो
या आरी से इस्का बढ़ा हुआ हिस्सा
तुम्हें पता है
कितना डर है मुझे?
तुम्हें खो देना का?
हाँ पाने से पहले ही!
तुमको पाया नहीं है मैंने?
ऐसा लगता है पा लिया है
ये एहसास बहुत भूस्खलन के पहले के सन्नाटे जैसा है
सब ढह जाएगा साथ में
चट्टान गिरते ही
15th August, 2022
00:53am